श्री विवेकानन्द की कोई परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। वे एक महात्मा, एक सन्यासी, वेदांत पर पकड़ रखनेवाले विद्वान थे। अपने ३९ वर्ष के छोटे जीवन में उन्होने विश्व को काफी विचारोत्तेजना दिए। १८९३ में शिकागो के धर्मं संसद में दिए गए भाषण से उन्होने बहुत प्रसिद्धि पाई। वे विभिन्न संस्कृतियों का वृहद् ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति थे।
श्री विवेकानन्द ने मानव सेवा को अत्यधिक महत्त्व दिया। उन्होने मानव सेवा की तुलना प्रभु वंदना से की है। उन्होने हर मानव में परम आत्मा की अनुभूति की है। इसके अतिरिक्त वे एक परम देशभक्त थे और उन्हें भारतीय होने का गर्व था। उन्होने भारतीयों को मुक्त होने का आवाहन किया था।
यहाँ पाठकों के लिए उनके कुछ विचार प्रस्तुत है: -
श्री विवेकानन्द ने मानव सेवा को अत्यधिक महत्त्व दिया। उन्होने मानव सेवा की तुलना प्रभु वंदना से की है। उन्होने हर मानव में परम आत्मा की अनुभूति की है। इसके अतिरिक्त वे एक परम देशभक्त थे और उन्हें भारतीय होने का गर्व था। उन्होने भारतीयों को मुक्त होने का आवाहन किया था।
यहाँ पाठकों के लिए उनके कुछ विचार प्रस्तुत है: -
आनंदित रहें; दूसरो की आलोचना न करें, अपना संदेश दें, आप जो सिखाना चाहते हैं वह सिखाएं, और वहीं रूक जाएँ।
हितकर को अपनाएं और रुचिकर का त्याग करें।
उन्नत्ति कर, आगे बढ़, ओ बहादुर आत्मा! उनको आजाद करने के लिए जो जकड़े हुए हैं, दुखितों का भार कम करने और अज्ञानी हृदयों के गहन अंधकार को जाज्वल्यमान करने के लिए।
आभार मिले या नहीं, सो मत, निर्बल मत बन।
बुरे का साथ छोड़ो, क्योंकि तुममें पुराने घावों का दाग है, और बुरे लोगों का साथ वह चीज़ है जो घाव कुरेदने में सक्षम है।
बहादुर और खरा बनो; तब अनुराग से किसी पथ का अनुसरण करो, और तुम अवश्य सम्पूर्ण तक पहुंच जाओगे।
मुक्त हो, और तब जितने भी चाहो व्यक्तित्व रखो, तब हम एक अभिनेता की तरह मंच पर आएंगे और एक भिखारी के पात्र का अभिनय करेंगे।
जिस व्यक्ति की तुमने मदद की है उसका आभार प्रकट करो, उसे भगवान जैसा समझो।
विश्व में रहो, लेकिन इसके मत बनो, कमल की पत्तियों की तरह जिसका जड़ कीचड़ में होते हुए भी पवित्र रहता है।
ईशा का प्रतिरूप मत बनो, ईशा बनो।
निराश मत हो, जब पवित्र सुधा पहुंच में न हो तो इसका मतलब यह नहीं की हम विष का सेवन करें।
मेरी या अपनी सफलता से हवा में मत उड़ो; काफी बड़े काम करने हैं; यह छोटी सफलता क्या है उस आनेवाले कार्य की तुलना में?
हर एक के विभिन्न मतों के साथ निर्वाह करो, धैर्य, शुचिता और धीरज की विजय होगी।
अविश्वास के साथ शुरुआत करो। विश्लेषण करो, परीक्षा लो, सिद्ध करो और फिर ग्रहण करो।
ना तो मनुष्य या ना भगवान को या न इस विश्व में किसी अन्य को दोष दो और अच्छा करने का प्रयत्न करो।
सभी अच्छी शक्तियों को इकठ्ठा करो, इसकी चिंता मत करो कि तुम किस परचम के तले कार्यरत हो, अपने वर्ण कि चिंता मत करो - हरा, नीला या लाल, परन्तु सभी रंगों को मिला दो और श्वेत तीव्र पुंजा बनाओ जो कि प्यार का रंग है।
प्रकाश लाओ; अँधेरा अपने आप छंट जाएगा।
अपने स्वयं के कमल को खिलाओ, मधुमक्खी अपने आप आएगी।
सर्वश्रेष्ठ आदर्श को चुनो और अपना जीवन इस पर न्यौछावर कर दो।
स्वयं पर विजय पाओ और सम्पूर्ण जगत तुम्हारा है।
हमेशा स्वयं पर विश्वास पैदा करो।
मुक्त होने का साहस करो, अपने स्वछन्द विचारों के साथ जाने का साहस करो और उन विचारों को जीवन में अपनाने का साहस करो।
अहर्निश अपने आप से कहो, "मैं वह (ईश्वर) हूँ"।
कुछ भी इच्छा मत रखो, लालसा छोड़ो और पूर्ण संतुष्टि पाओ।
इस भारतीय जीवन से अलग मत हो; एक पल के लिए भी ऐसा मत सोचो कि अगर भारतीय अन्य संस्कृति वाले लोगों के तरह कपड़े पहने, भोजन करें एवं व्यवहार करें तो यह भारत के लिए अच्छा होगा।
इसकी परवाह मत करो कि कोई तुम्हारी सहायता करेगा। क्या भगवान सभी मानव सहायता से अत्यधिक समर्थ नही है?
एक पल के लिए भी देर मत करो, कल के लिए कुछ भी मत छोड़ो - निर्णायक घड़ी के लिए तैयार हो जाओ, वो तत्काल आ सकता है, अभी भी।
विध्वंस मत करो। रुढियों को बदलने वाले सुधारकों से संसार का कुछ भला नहीं होता। तोड़ो मत, गिराओ मत पर निर्माण करो। अगर कर सकते हो तो सहायता करो, अगर नहीं तो हाथ जोड़कर खरे रहो और देखो। अगर तुम सहायता नहीं कर सकते हो तो कष्ट मत दो।
किसी से घृणा मत करो, क्योंकि तुमसे निकली घृणा दीर्घावधि में अवश्य ही तुम तक वापस आएगा।
दूसरो को कष्ट मत दो। सभी को अपने आप के जैसे प्यार करो क्योंकि संसार एक है। दूसरो को कष्ट देने में मैं खुद को भी नुकसान पहुँचा रहा हूँ और दूसरो को प्यार करने में मैं अपने आप को प्यार कर रहा हूँ।
किसी पर भी तरस मत खाओ, सभी को अपने बराबर समझो, अपने आपको मूलभूत पाप असमता से निर्मल करो।
ये मत कहो कि हम निर्बल हैं; हमलोग कुछ भी और सबकुछ कर सकते हैं। हम क्या नही कर सकते हैं? सब कुछ हमारे द्वारा किया जा सकता है। हम सबके पास एकसमान महान आत्मा है, हम इसमे विश्वास करें।
अपनी उर्जा बात करने में मत खर्चा करो, अपितु शांति में ध्यान करो और बाहरी शोर शराबे को स्वयं को मत परेशान करने दो।
मूर्खों की तरह सभी कहे गए बातों को अपनी सम्मति मत दो। अगर मैं भी कुछ घोषित करूं तो उसमे अपनी अंतर्निहीत विश्वास मत दो। सर्वप्रथम अच्छी तरह समझो तब स्वीकार करो।
हर विचार जो तुम्हें शक्ति देता हो उसका अनुपालन करो और जो विचार तुम्हे कमजोर करे उसका त्याग करो।
प्रत्येक व्यक्ति को शासन करने से पहले आज्ञा पालन करना सीखना चाहिऐ।
इसलिए मन को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से युक्त करो, अहर्निश उसका ध्यान करो, तब उसके द्वारा महान हाँ कार्य सिद्ध होगा। अपवित्रता पर बात मत करो, अपितु यह कहो कि हम पवित्र हैं।
प्रथम चरित्र का निर्माण करो, प्रथम अध्यात्म उपार्जित करो और परिणाम अपने आप आयेगा।
सर्वप्रथम, हमारे युवा शक्तिशाली बने, धर्म उसके बाद आएगा। वीर्यवान बने मेरे युवा मित्र; यह तुम्हे मेरी सलाह है।
ह्रदय की सुनो, एक सच्चा दिल ज्ञान से आगे तक को देखता है; ये प्रेरित होता है; ये वह जानता है जो बुद्धि कभी जान ही नहीं सकती और जब कभी भी सच्चे ह्रदय और ज्ञान में मतभेद हो, हमेशा सच्चे ह्रदय का पक्ष लो जबकि तुम्हे यह भी पता हो कि जो तुम्हारा दिल सोच रहा है वह अतर्कसंगत है।
अपने सभी कर्मों का भार ईश्वर पर छोड़ दो; सब कुछ त्याग दो, अच्छा और बुरा दोनों।
जाओ और सबको कह दो, " तुम सभी में शास्वत शक्ति है और उसे जगाने का यत्न करो"।
अपने समक्ष यह लक्ष्य रखो - " जनसाधारण का उद्धार बिना उनके धर्मं को क्षति पहुँचाये हुए"।
दूसरो की सारी अच्छाइयों को सीखो। इसे अपने में समाह्रित करो और अपने ढंग से ग्रहण करो; दुसरे मत बन जाओ।
सबको यह शिक्षा मिलनी चाहिऐ कि ईश्वर उनके अन्दर है और हर व्यक्ति को अपना मोक्ष स्वयं पाना है।
बचपन से ही आनंददायक, सशक्त और उपकारी विचार उनके (बच्चों के ) मन में प्रविष्ट हो जाये।
हम साहसी बने, सत्य को जाने और सत्य का अभ्यास करें। लक्ष्य शायद दूर है पर उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक रुको मत।
इसे एक नियम बना लो कि योगाभ्यास के बिना भोजन ना करें; अगर तुम यह करोगे तो भूख की शक्ति तुम्हारे आलस्य को मिटा देगी।
एक बार फिर अद्वैत के शक्तिशाली ध्वज को उठाओ, क्योंकि कहीं और तुम्हे वो नैसर्गिक स्नेह नहीं मिलेगा जब तक कि तुम यह न देखो कि ईश्वर हर एक में विद्यमान है।
मानव का अध्ययन करो, वह एक जीवंत कविता है।
बोलो, " अज्ञानी भारतीय, गरीब और दरिद्र भारतीय, ब्राह्मण भारतीय और चंडाल भारतीय मेरे भाई है"।
सबकुछ देखो, सबकुछ करो किन्तु आसक्त मत हो। जिस पल परम आसक्ति होगी, मनुष्य अपने आप को खो देता है, इसमे उपरांत वह अपने आप का स्वामी नहीं होता, वह दास बन जाता है।
खड़े हो जाओ, निर्भीक रहो, शक्तिशाली रहो। अपने कन्धों पर सारे उत्तरदायित्व लो और इसे जानो कि तुम अपने नियति के सृजनहार हो। सारी शक्ति और सहायता जो तुम चाहते हो वह तुम्हारे अन्दर मौजूद है।
सब कुछ फ़ेंक दो, अपनी मुक्ति को भी, और जाओ और दूसरो की मदद करो।
हम आसमान जैसे खुले हों, समुद्र की तरह गहरे हों, हममें धर्मोंन्मत्त जैसा उत्साह हो, रहस्यवादियों जैसी गहराई और संशयवादी जैसे बृहद विचार हों।
तुम हर संप्रदाय के व्यक्तियों के साथ अपनी सहानुभूति अवश्य रखो।
तुम अवश्य अपने शरीर, मन और वाकशक्ति को संसार के भलाई में लगाओ।
तुम कभी दूसरो के पथ का अनुसरण मत करो, क्योंकि वह उसका रास्ता है, तुम्हारा नही।
नोट: यह कथन "words of inspiration" से लिया गया है और। इसका मूल अंग्रेजी कथन ईसी ब्लोग पर उपलब्ध है। अनुवाद मैंने स्वयं किया है और इसमे काफी सुधार कि गुंजाईश है। आपकी राय वांछित है।
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