Thursday, December 13

आनंदतिरेक रहना ही जीवन है

आनंदमय विचारों से रचनात्मक ब्रह्मांडिय किरणें निकलती है। ये मानवों का विकास करती है और हमारे आस पास के वातावरण को शुद्ध करती है। "मैं कर सकता हूँ" या "हम कर सकते हैं" जैसे वाक्य, शक्तिपुंज का निस्सारण करते हैं। हमलोग इस विशिष्ट शक्ति का ज्ञानपूर्वक और तरीके से इस्तेमाल कर अपने आपको सामर्थ्यवान बना सकते हैं। उर्जा सरंक्षण की तरह हम अपने ऋणात्मक विचारों को कम करके, धनात्मक विचारों को सरंक्षित कर सकते हैं।
सकारात्मक धारणा एक आदमी को सुदृढ़ और विश्वासी बनाता है। इस धारणा का मतलब केवल ये दुहराना नही है की - " सब कुछ ठीक होगा" या " मैं अपनी मंजिल पा लूँगा" इत्यादि, इत्यादि। सकारात्मक दृष्टिकोण एक सम्पूर्ण शैली है। ये शैली बताती है कि एक व्यक्ति इस दुनिया में अपने आपको किस प्रकार चलाता है। स्वयं एवं अपने आस पास के व्यक्ति के प्रति समर्पण इसका एक माप हो सकता है। मेरे विचार से अपने स्वास्थ्य का अच्छी तरह ध्यान रखना किसी व्यक्ति के सबसे बड़े सकारात्मक दृष्टिकोण को चिन्हित करता है। अच्छी लहरों को उत्सर्जित करने के लिए हमे शारीरिक और मानसिक रुप से योग्य होना पड़ेगा।
यह संसार जीव जंतुओं से भरा हुआ है, जिसमे मानव को विशिष्ट तर्क शक्ति से युक्त किया गया है। यह विशेष ज्ञान हमे और ज्यादा उत्तरदायी बनता है। हमारा अपने सहभागी और अन्य जीव जंतुओं के प्रति उत्तरदायित्व अति महत्वपूर्ण हो जाता है। हमे इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। हमे इस विश्व को रिहाइश के लिए एक बेहतर स्थान बनाना है। इस विश्व को और अच्छा बनाने के लिए हमे सुक्ष्म चीजों पर मेहनत करना होगा। सुक्ष्म चीजों में सुधार लाकर व्यापक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
आज के विश्व में लोग असंतुष्ट है। वे विश्व में मौजूद अंतर्विरोध और संघर्ष से असंतुष्ट है। नैतिक मूल्यों, ईमानदारी और आदर्षा सामाजिक व्यवहार पर दवाब और खिंचाव है। मैं विलास और गरीबी के बीच के खाई को देख कर अचंभित हूँ। भौतिक प्रचुरता की चमक और दीन हीन गरीबी का अन्धकार संग संग हैं। एक विस्मयकारी समूह अशिक्षित है और उनमे से बहुत को दो जून का भोजन तक प्राप्त नहीं होता है। उनके लिए स्वास्थ्य सेवा एक विलासिता है। कई तो इतने अभागे हैं कि उन्हें अपनी बीमारी की वजह और मृत्यु के कारण तक का पता नहीं चलता। सभ्यताओं में संघर्ष है। जलवायु में परिवर्तन और बदतर हो रहा है। व्यापार नीतियां असंतुलित है। वैश्विक राजनीति अति संकीर्ण हो गई है। एक व्यक्ति की इच्छा, एक पूरे राष्ट्र के न्यायसंगत हित से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। प्रौद्योगिकी विकास की दिशा व्यापक जनहित की ओर नही है। प्रतिदिन, हम एक बर्बरतापूर्ण मानव व्यवहार से चकित होते हैं, वंचना की कथा से शर्मसार होते हैं और असभ्य आचरण से स्तंभित होते हैं। यहाँ वहाँ अति उग्र व्यवहार देखने को मिलता है। विवेक पीछे हट गया है। व्यक्ति खत्म हो गया है। अब वह मात्र एक समूह, गिरोह, जाति, खेमा, भीड़ अथवा झुंड का भाग है । कोई भी विवेक का इस्तेमाल नही कर रहा है और न ही नीति और सदाचार का पालन कर रह है ।
यह सब व्यक्ति में अबाधित और नैसर्गिक आनंद उर्जा के प्रवाह में बाधक है। हमे रचनात्मकता के विकास के लिए प्रयास करना होगा। मानव मस्तिष्क असीम क्षमताओं का भंडार है। हमे इसके सामर्थ्य को प्राप्त करना होगा। हम अपने आप से शुरुआत कर सकते हैं। हम इस समाज, देश, विश्व एवं ब्रह्माण्ड के अविभाज्य अंग हैं।
सामान्य विश्लेषण से ज्ञात होता है कि हमारे ज्यादातर संकट मानव जनित है। अतः इसका निराकरण हमे अपने आपको समर्पित कर किया जा सकता है। अगर हम अच्छे बन जाएँ तो यह विश्व अवश्य अच्छा बन जाएगा। हमारी सम्मिलित धनात्मक उर्जा इस विश्व को बदल सकती है। जॉन ऍफ़ केनेडी ने कहा था, " हमारे संकट मानव निर्मित हैं, अतः वे मनुष्य द्वारा हल किये जा सकते हैं। मानव भविष्य की कोई भी समस्या मानव दक्षता से ऊपर नही है।" मुझे इस कथ्य में पूर्ण विश्वास है और मैं यह आशा करता हूँ कि आपका भी इसमें घोर विश्वास हो।
और आनंद दायक विचारों के साथ वापस लौटूंगा .........................

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