Positive thinking is expected to provide a refreshment in the present day ferocious world. Negatives are on the rise. We need to balance it with nourishments of feel good factors. Feeling good is a choice. Almost every event provides us an opportunity to be happy or sad. We decide which side of the coin we want to see. It does not mean insensitivity rather it means selection of cheerfulness above the gloom, life over death, optimism over pessimism.
Sunday, December 30
Tuesday, December 25
विवेकानन्द के कुछ प्रेरणादायी विचार
श्री विवेकानन्द की कोई परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। वे एक महात्मा, एक सन्यासी, वेदांत पर पकड़ रखनेवाले विद्वान थे। अपने ३९ वर्ष के छोटे जीवन में उन्होने विश्व को काफी विचारोत्तेजना दिए। १८९३ में शिकागो के धर्मं संसद में दिए गए भाषण से उन्होने बहुत प्रसिद्धि पाई। वे विभिन्न संस्कृतियों का वृहद् ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति थे।
श्री विवेकानन्द ने मानव सेवा को अत्यधिक महत्त्व दिया। उन्होने मानव सेवा की तुलना प्रभु वंदना से की है। उन्होने हर मानव में परम आत्मा की अनुभूति की है। इसके अतिरिक्त वे एक परम देशभक्त थे और उन्हें भारतीय होने का गर्व था। उन्होने भारतीयों को मुक्त होने का आवाहन किया था।
यहाँ पाठकों के लिए उनके कुछ विचार प्रस्तुत है: -
श्री विवेकानन्द ने मानव सेवा को अत्यधिक महत्त्व दिया। उन्होने मानव सेवा की तुलना प्रभु वंदना से की है। उन्होने हर मानव में परम आत्मा की अनुभूति की है। इसके अतिरिक्त वे एक परम देशभक्त थे और उन्हें भारतीय होने का गर्व था। उन्होने भारतीयों को मुक्त होने का आवाहन किया था।
यहाँ पाठकों के लिए उनके कुछ विचार प्रस्तुत है: -
आनंदित रहें; दूसरो की आलोचना न करें, अपना संदेश दें, आप जो सिखाना चाहते हैं वह सिखाएं, और वहीं रूक जाएँ।
हितकर को अपनाएं और रुचिकर का त्याग करें।
उन्नत्ति कर, आगे बढ़, ओ बहादुर आत्मा! उनको आजाद करने के लिए जो जकड़े हुए हैं, दुखितों का भार कम करने और अज्ञानी हृदयों के गहन अंधकार को जाज्वल्यमान करने के लिए।
आभार मिले या नहीं, सो मत, निर्बल मत बन।
बुरे का साथ छोड़ो, क्योंकि तुममें पुराने घावों का दाग है, और बुरे लोगों का साथ वह चीज़ है जो घाव कुरेदने में सक्षम है।
बहादुर और खरा बनो; तब अनुराग से किसी पथ का अनुसरण करो, और तुम अवश्य सम्पूर्ण तक पहुंच जाओगे।
मुक्त हो, और तब जितने भी चाहो व्यक्तित्व रखो, तब हम एक अभिनेता की तरह मंच पर आएंगे और एक भिखारी के पात्र का अभिनय करेंगे।
जिस व्यक्ति की तुमने मदद की है उसका आभार प्रकट करो, उसे भगवान जैसा समझो।
विश्व में रहो, लेकिन इसके मत बनो, कमल की पत्तियों की तरह जिसका जड़ कीचड़ में होते हुए भी पवित्र रहता है।
ईशा का प्रतिरूप मत बनो, ईशा बनो।
निराश मत हो, जब पवित्र सुधा पहुंच में न हो तो इसका मतलब यह नहीं की हम विष का सेवन करें।
मेरी या अपनी सफलता से हवा में मत उड़ो; काफी बड़े काम करने हैं; यह छोटी सफलता क्या है उस आनेवाले कार्य की तुलना में?
हर एक के विभिन्न मतों के साथ निर्वाह करो, धैर्य, शुचिता और धीरज की विजय होगी।
अविश्वास के साथ शुरुआत करो। विश्लेषण करो, परीक्षा लो, सिद्ध करो और फिर ग्रहण करो।
ना तो मनुष्य या ना भगवान को या न इस विश्व में किसी अन्य को दोष दो और अच्छा करने का प्रयत्न करो।
सभी अच्छी शक्तियों को इकठ्ठा करो, इसकी चिंता मत करो कि तुम किस परचम के तले कार्यरत हो, अपने वर्ण कि चिंता मत करो - हरा, नीला या लाल, परन्तु सभी रंगों को मिला दो और श्वेत तीव्र पुंजा बनाओ जो कि प्यार का रंग है।
प्रकाश लाओ; अँधेरा अपने आप छंट जाएगा।
अपने स्वयं के कमल को खिलाओ, मधुमक्खी अपने आप आएगी।
सर्वश्रेष्ठ आदर्श को चुनो और अपना जीवन इस पर न्यौछावर कर दो।
स्वयं पर विजय पाओ और सम्पूर्ण जगत तुम्हारा है।
हमेशा स्वयं पर विश्वास पैदा करो।
मुक्त होने का साहस करो, अपने स्वछन्द विचारों के साथ जाने का साहस करो और उन विचारों को जीवन में अपनाने का साहस करो।
अहर्निश अपने आप से कहो, "मैं वह (ईश्वर) हूँ"।
कुछ भी इच्छा मत रखो, लालसा छोड़ो और पूर्ण संतुष्टि पाओ।
इस भारतीय जीवन से अलग मत हो; एक पल के लिए भी ऐसा मत सोचो कि अगर भारतीय अन्य संस्कृति वाले लोगों के तरह कपड़े पहने, भोजन करें एवं व्यवहार करें तो यह भारत के लिए अच्छा होगा।
इसकी परवाह मत करो कि कोई तुम्हारी सहायता करेगा। क्या भगवान सभी मानव सहायता से अत्यधिक समर्थ नही है?
एक पल के लिए भी देर मत करो, कल के लिए कुछ भी मत छोड़ो - निर्णायक घड़ी के लिए तैयार हो जाओ, वो तत्काल आ सकता है, अभी भी।
विध्वंस मत करो। रुढियों को बदलने वाले सुधारकों से संसार का कुछ भला नहीं होता। तोड़ो मत, गिराओ मत पर निर्माण करो। अगर कर सकते हो तो सहायता करो, अगर नहीं तो हाथ जोड़कर खरे रहो और देखो। अगर तुम सहायता नहीं कर सकते हो तो कष्ट मत दो।
किसी से घृणा मत करो, क्योंकि तुमसे निकली घृणा दीर्घावधि में अवश्य ही तुम तक वापस आएगा।
दूसरो को कष्ट मत दो। सभी को अपने आप के जैसे प्यार करो क्योंकि संसार एक है। दूसरो को कष्ट देने में मैं खुद को भी नुकसान पहुँचा रहा हूँ और दूसरो को प्यार करने में मैं अपने आप को प्यार कर रहा हूँ।
किसी पर भी तरस मत खाओ, सभी को अपने बराबर समझो, अपने आपको मूलभूत पाप असमता से निर्मल करो।
ये मत कहो कि हम निर्बल हैं; हमलोग कुछ भी और सबकुछ कर सकते हैं। हम क्या नही कर सकते हैं? सब कुछ हमारे द्वारा किया जा सकता है। हम सबके पास एकसमान महान आत्मा है, हम इसमे विश्वास करें।
अपनी उर्जा बात करने में मत खर्चा करो, अपितु शांति में ध्यान करो और बाहरी शोर शराबे को स्वयं को मत परेशान करने दो।
मूर्खों की तरह सभी कहे गए बातों को अपनी सम्मति मत दो। अगर मैं भी कुछ घोषित करूं तो उसमे अपनी अंतर्निहीत विश्वास मत दो। सर्वप्रथम अच्छी तरह समझो तब स्वीकार करो।
हर विचार जो तुम्हें शक्ति देता हो उसका अनुपालन करो और जो विचार तुम्हे कमजोर करे उसका त्याग करो।
प्रत्येक व्यक्ति को शासन करने से पहले आज्ञा पालन करना सीखना चाहिऐ।
इसलिए मन को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से युक्त करो, अहर्निश उसका ध्यान करो, तब उसके द्वारा महान हाँ कार्य सिद्ध होगा। अपवित्रता पर बात मत करो, अपितु यह कहो कि हम पवित्र हैं।
प्रथम चरित्र का निर्माण करो, प्रथम अध्यात्म उपार्जित करो और परिणाम अपने आप आयेगा।
सर्वप्रथम, हमारे युवा शक्तिशाली बने, धर्म उसके बाद आएगा। वीर्यवान बने मेरे युवा मित्र; यह तुम्हे मेरी सलाह है।
ह्रदय की सुनो, एक सच्चा दिल ज्ञान से आगे तक को देखता है; ये प्रेरित होता है; ये वह जानता है जो बुद्धि कभी जान ही नहीं सकती और जब कभी भी सच्चे ह्रदय और ज्ञान में मतभेद हो, हमेशा सच्चे ह्रदय का पक्ष लो जबकि तुम्हे यह भी पता हो कि जो तुम्हारा दिल सोच रहा है वह अतर्कसंगत है।
अपने सभी कर्मों का भार ईश्वर पर छोड़ दो; सब कुछ त्याग दो, अच्छा और बुरा दोनों।
जाओ और सबको कह दो, " तुम सभी में शास्वत शक्ति है और उसे जगाने का यत्न करो"।
अपने समक्ष यह लक्ष्य रखो - " जनसाधारण का उद्धार बिना उनके धर्मं को क्षति पहुँचाये हुए"।
दूसरो की सारी अच्छाइयों को सीखो। इसे अपने में समाह्रित करो और अपने ढंग से ग्रहण करो; दुसरे मत बन जाओ।
सबको यह शिक्षा मिलनी चाहिऐ कि ईश्वर उनके अन्दर है और हर व्यक्ति को अपना मोक्ष स्वयं पाना है।
बचपन से ही आनंददायक, सशक्त और उपकारी विचार उनके (बच्चों के ) मन में प्रविष्ट हो जाये।
हम साहसी बने, सत्य को जाने और सत्य का अभ्यास करें। लक्ष्य शायद दूर है पर उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक रुको मत।
इसे एक नियम बना लो कि योगाभ्यास के बिना भोजन ना करें; अगर तुम यह करोगे तो भूख की शक्ति तुम्हारे आलस्य को मिटा देगी।
एक बार फिर अद्वैत के शक्तिशाली ध्वज को उठाओ, क्योंकि कहीं और तुम्हे वो नैसर्गिक स्नेह नहीं मिलेगा जब तक कि तुम यह न देखो कि ईश्वर हर एक में विद्यमान है।
मानव का अध्ययन करो, वह एक जीवंत कविता है।
बोलो, " अज्ञानी भारतीय, गरीब और दरिद्र भारतीय, ब्राह्मण भारतीय और चंडाल भारतीय मेरे भाई है"।
सबकुछ देखो, सबकुछ करो किन्तु आसक्त मत हो। जिस पल परम आसक्ति होगी, मनुष्य अपने आप को खो देता है, इसमे उपरांत वह अपने आप का स्वामी नहीं होता, वह दास बन जाता है।
खड़े हो जाओ, निर्भीक रहो, शक्तिशाली रहो। अपने कन्धों पर सारे उत्तरदायित्व लो और इसे जानो कि तुम अपने नियति के सृजनहार हो। सारी शक्ति और सहायता जो तुम चाहते हो वह तुम्हारे अन्दर मौजूद है।
सब कुछ फ़ेंक दो, अपनी मुक्ति को भी, और जाओ और दूसरो की मदद करो।
हम आसमान जैसे खुले हों, समुद्र की तरह गहरे हों, हममें धर्मोंन्मत्त जैसा उत्साह हो, रहस्यवादियों जैसी गहराई और संशयवादी जैसे बृहद विचार हों।
तुम हर संप्रदाय के व्यक्तियों के साथ अपनी सहानुभूति अवश्य रखो।
तुम अवश्य अपने शरीर, मन और वाकशक्ति को संसार के भलाई में लगाओ।
तुम कभी दूसरो के पथ का अनुसरण मत करो, क्योंकि वह उसका रास्ता है, तुम्हारा नही।
नोट: यह कथन "words of inspiration" से लिया गया है और। इसका मूल अंग्रेजी कथन ईसी ब्लोग पर उपलब्ध है। अनुवाद मैंने स्वयं किया है और इसमे काफी सुधार कि गुंजाईश है। आपकी राय वांछित है।
Sunday, December 23
Some inspirational thoughts of Swami Vivekanand
Shri Vivekanand does not need any introduction. He was a saint, a sanyasi, a servant of people, an authority on Vedant (Hindu Philosophy). In his short earthly abode of thirty nine years (from 1863 to 1902), he gave this world substantial stirring. He leaped to fame after his address at Parliament of Religions at Chicago in 1893. He was a man of vast understanding of different culture.
Shri Vivekanand gave huge importance to the service of human kind। He equated service to humanity with the prayers rendered to the God. He felt the presence of supreme soul in each individual. Additionally, he was a devout patriot and felt pride in being Indian. He exhorted Indians to free themselves.
Here are some of his thoughts for the benefit of readers:-
Be positive; do not criticize others. Give your message, teach what you have to teach, and there stop.
Accept the beneficial and discard the pleasant.
Advance, forward, O ye brave souls, to set free those that are in fetters, to lessen the burden of of the miserable, and to illuminate the abysmal darkness of ignorant hearts.
Appreciation or no appreciation, sleep not, slacken not.
Avoid evil company, because the scars of old wounds are in you, and evil company is just the thing that is necessary to call them out।
Be brave and sincere: then follow any path with devotion, and you must reach the whole.
Be free, and then have any number of personalities you like. Then we will play like the actor who comes upon the stage and plays the part of a beggar.
Be grateful to the man you help, think of him as God.
Be in the world, but not of it, like the lotus leaf whose roots are in the mud but which remains always pure.
Be not an imitation of Jesus, but be Jesus.
Be not disheartened. When good nectar is unattainable, it is no reason why we should eat poison.
Be not inflated with my success or yours. Great works are to be done: what is this small success in comparison with what is to come?
Bear with the various opinions of everybody, Patience, purity, and perseverance will prevail.
Begin with disbelief. Analyze, test, prove everything, and then take it.
Blame neither man, nor God, nor anyone in the world. When you find yourselves suffering, blame yourselves, and try to do better.
Bring all the forces of good together. Do not care under what banner you march. Do not care what be your colour – green, blue or red – but mix up all the colours and produce that intense glow of white, the colour of love.
Bring in the light; the darkness will vanish by itself.
Bring your own lotus to blossom; the bees will come of themselves.
Choose the highest ideal, and give your life up to that.
Conquer yourself, and the whole universe is yours.
Cultivate always, "Faith in Yourself".
Dare to be free, dare to go as far as your thought leads, and dare to carry that out in your life.
Day and Night tell yourself, “I am He, I am He.”
Desire nothing, give up all desires and be perfectly satisfied.
Do not be dragged away out of this Indian life; do not for a moment think that it would be better for India if all the Indians dressed, ate and behaved like another race.
Do not care for anybody to help you. Is not the Lord infinitely greater than all human help?
Do not delay a moment. Leave nothing for tomorrow. Get ready for the final event, which may overtake you immediately, even now.
Do not desire anything. What makes us miserable? The cause of all miseries from which we suffer is desire.
Do not destroy. Iconoclastic reformers do no good to the world. Break not, pull not anything down, but build. Help, if you can; if you cannot, fold your hands and stand by and see things go on. Do not injure, if you cannot render help. Say not a word against any man's convictions so far as they are sincere.
Do not hate anybody, because that hatred which comes out from you, must, in the long run, come back to you.
Do not injure another. Love everyone as your own self, because the whole universe is One. In injuring another, I am injuring myself, in loving another, I am loving myself.
Do not pity anyone. Look upon all as your equal, cleanse yourself of the primal sin of inequality.
Do not say we are weak; we can do anything and everything. What can we not do? Everything can be done by us; we all have the same glorious soul, let us believe in it.
Do not spend your energy in talking, but meditate in silence; and do not let the rush of the outside world disturb you.
Don't nod assent like a fool to everything said. Don't put implicit faith, even if I declare something. First clearly grasp and then accept.
Every idea that strengthens you must be taken up and every thought that weakens you must be rejected.
Everyone should learn to obey before he can command.
Fill the brain, therefore, with high thoughts, highest ideals, place them day and night before you, and out of that will come great work. Talk not about impurity, but say that we are pure.
First form character, first earn spirituality and results will come of themselves.
First of all, our young men must be strong. Religion will come afterwards. Be strong my young friends; that is my advice to you.
Follow the heart. A pure heart sees beyond the intellect; it gets inspired; it knows things that reason can never know, and whenever there is conflict between the pure heart and the intellect, always side with the pure heart even if you think what your heart is doing is unreasonable.
Give up the burden of all deeds to the Lord; give all, both good and bad.
Go and tell all, “ In every one of you lies that Eternal power”, and try to wake it up.
Keep the motto before you - “ Elevation of masses without injuring their religion.”
Learn everything that is good from others, but bring it in and in your own way absorb it; do not become others.
Let everyone is taught that the divine is within, and everyone will work out his own salvation.
Let positive, strong, helpful thought enter into their brains (children's brains) from very childhood.
Let us be brave. Know the Truth and practice the Truth. The goal may be distant, but awake, arise, and stop not till the goal is reached.
Make it a rule not to eat until you have practised (yoga); if you do this, the sheer force of hunger will break your laziness.
Raise once more that mighty banner of Advaita, for on no other ground can you have that wonderful love until you see that the same Lord is present everywhere.
Read man, he is the living poem.
Say, “ The ignorant Indian, the poor and destitute Indian, the Brahmin Indian, the Pariah Indian, is my brother.”
See everything, do everything, but be not attached. As soon as extreme attachment comes, a man loses himself, he is no more master of himself, he is a slave.
Stand up and reason out, having no blind faith. Religion is a question of being and becoming, not of believing.
Stand up, be bold, be strong. Take the whole responsibility on your own shoulders, and know that you are the creator of your own destiny. All the strength and succour you want is within yourselves.
Throw away everything, even your own salvation, and go and help others.
We must be as broad as the skies, as deep as the ocean; we must have the zeal of the fanatic, the depth of the mystic, and the width of the agnostic.
You must express your sympathy with people of all sects.
You must give your body, mind and speech to “ the welfare of the world”.
You should never try to follow another's path, for that is his way, not yours.
Source: Words of inspiration, published by Swami Lokeswarananda,
ISBN 81-85843-25-2
Thursday, December 13
आनंदतिरेक रहना ही जीवन है
आनंदमय विचारों से रचनात्मक ब्रह्मांडिय किरणें निकलती है। ये मानवों का विकास करती है और हमारे आस पास के वातावरण को शुद्ध करती है। "मैं कर सकता हूँ" या "हम कर सकते हैं" जैसे वाक्य, शक्तिपुंज का निस्सारण करते हैं। हमलोग इस विशिष्ट शक्ति का ज्ञानपूर्वक और तरीके से इस्तेमाल कर अपने आपको सामर्थ्यवान बना सकते हैं। उर्जा सरंक्षण की तरह हम अपने ऋणात्मक विचारों को कम करके, धनात्मक विचारों को सरंक्षित कर सकते हैं।
सकारात्मक धारणा एक आदमी को सुदृढ़ और विश्वासी बनाता है। इस धारणा का मतलब केवल ये दुहराना नही है की - " सब कुछ ठीक होगा" या " मैं अपनी मंजिल पा लूँगा" इत्यादि, इत्यादि। सकारात्मक दृष्टिकोण एक सम्पूर्ण शैली है। ये शैली बताती है कि एक व्यक्ति इस दुनिया में अपने आपको किस प्रकार चलाता है। स्वयं एवं अपने आस पास के व्यक्ति के प्रति समर्पण इसका एक माप हो सकता है। मेरे विचार से अपने स्वास्थ्य का अच्छी तरह ध्यान रखना किसी व्यक्ति के सबसे बड़े सकारात्मक दृष्टिकोण को चिन्हित करता है। अच्छी लहरों को उत्सर्जित करने के लिए हमे शारीरिक और मानसिक रुप से योग्य होना पड़ेगा।
यह संसार जीव जंतुओं से भरा हुआ है, जिसमे मानव को विशिष्ट तर्क शक्ति से युक्त किया गया है। यह विशेष ज्ञान हमे और ज्यादा उत्तरदायी बनता है। हमारा अपने सहभागी और अन्य जीव जंतुओं के प्रति उत्तरदायित्व अति महत्वपूर्ण हो जाता है। हमे इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। हमे इस विश्व को रिहाइश के लिए एक बेहतर स्थान बनाना है। इस विश्व को और अच्छा बनाने के लिए हमे सुक्ष्म चीजों पर मेहनत करना होगा। सुक्ष्म चीजों में सुधार लाकर व्यापक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
आज के विश्व में लोग असंतुष्ट है। वे विश्व में मौजूद अंतर्विरोध और संघर्ष से असंतुष्ट है। नैतिक मूल्यों, ईमानदारी और आदर्षा सामाजिक व्यवहार पर दवाब और खिंचाव है। मैं विलास और गरीबी के बीच के खाई को देख कर अचंभित हूँ। भौतिक प्रचुरता की चमक और दीन हीन गरीबी का अन्धकार संग संग हैं। एक विस्मयकारी समूह अशिक्षित है और उनमे से बहुत को दो जून का भोजन तक प्राप्त नहीं होता है। उनके लिए स्वास्थ्य सेवा एक विलासिता है। कई तो इतने अभागे हैं कि उन्हें अपनी बीमारी की वजह और मृत्यु के कारण तक का पता नहीं चलता। सभ्यताओं में संघर्ष है। जलवायु में परिवर्तन और बदतर हो रहा है। व्यापार नीतियां असंतुलित है। वैश्विक राजनीति अति संकीर्ण हो गई है। एक व्यक्ति की इच्छा, एक पूरे राष्ट्र के न्यायसंगत हित से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। प्रौद्योगिकी विकास की दिशा व्यापक जनहित की ओर नही है। प्रतिदिन, हम एक बर्बरतापूर्ण मानव व्यवहार से चकित होते हैं, वंचना की कथा से शर्मसार होते हैं और असभ्य आचरण से स्तंभित होते हैं। यहाँ वहाँ अति उग्र व्यवहार देखने को मिलता है। विवेक पीछे हट गया है। व्यक्ति खत्म हो गया है। अब वह मात्र एक समूह, गिरोह, जाति, खेमा, भीड़ अथवा झुंड का भाग है । कोई भी विवेक का इस्तेमाल नही कर रहा है और न ही नीति और सदाचार का पालन कर रह है ।
यह सब व्यक्ति में अबाधित और नैसर्गिक आनंद उर्जा के प्रवाह में बाधक है। हमे रचनात्मकता के विकास के लिए प्रयास करना होगा। मानव मस्तिष्क असीम क्षमताओं का भंडार है। हमे इसके सामर्थ्य को प्राप्त करना होगा। हम अपने आप से शुरुआत कर सकते हैं। हम इस समाज, देश, विश्व एवं ब्रह्माण्ड के अविभाज्य अंग हैं।
सामान्य विश्लेषण से ज्ञात होता है कि हमारे ज्यादातर संकट मानव जनित है। अतः इसका निराकरण हमे अपने आपको समर्पित कर किया जा सकता है। अगर हम अच्छे बन जाएँ तो यह विश्व अवश्य अच्छा बन जाएगा। हमारी सम्मिलित धनात्मक उर्जा इस विश्व को बदल सकती है। जॉन ऍफ़ केनेडी ने कहा था, " हमारे संकट मानव निर्मित हैं, अतः वे मनुष्य द्वारा हल किये जा सकते हैं। मानव भविष्य की कोई भी समस्या मानव दक्षता से ऊपर नही है।" मुझे इस कथ्य में पूर्ण विश्वास है और मैं यह आशा करता हूँ कि आपका भी इसमें घोर विश्वास हो।
और आनंद दायक विचारों के साथ वापस लौटूंगा .........................
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Sunday, December 9
Incredible India
Tourism is called the smoke free industry. It generates revenue without consuming natural resources. The prime reason of tourism is the natural curiosity of human being. We want to explore and we want to know. India provides the Ideal setting to quench the thirst of explorers of adventure, knowledge, history, heritage, geology, people and much more. Tourism is growing worldwide. Increase of disposable income with the individual is helping this Industry to grow at a faster pace in recent years. India has been a very important beneficiary of Tourism boom. The number of tourists visiting India has increased from 2.12 million in 1995 to 3.92 in 2005. The rate of growth during the decade 84 percent. The number of tourist has further rose to 4.42 million in 2006. The rate of growth of this sector has been sustained from many years now. It is heartening to note that Forex earning from this sector rose from USD 5731 million in 2005 USD 6570 million in 2006 recording a growth of 14.7%. This sector is among the top foreign earners for India. Tourism sector provides both direct and indirect employment which is highly required in India. As per the NCAER survey of 2002-03, this sector gave employment to 38.8 million people and accounted for 8.3 percentage of the total employment.
The “Incredible India” campaign of Ministry of Tourism has been the most focused media campaign of the Government of India. Its audio visual advertisement on prime television channels of the world and over Internet has generated a lot of interest in India. The quality of advertisement is fabulous. The fliers and booklets are also outstanding. The focus is on rich and diverse cultural heritage of India. Enchantment has been diversified from the Triangle of Agra, Delhi and Jaipur to Rural tourism, eco-tourism, adventurous sports, religious places, cultural monuments, Indian cuisine, herbal treatment and relaxation, medical tourism, visits to royal places, Yoga and spiritualism, Indian dances and martial arts, festivals etc. India can offer three sixty five days tourism because of its diverse weather.
Government of India has made concerted efforts to reap the benefits of inflow of tourists as a result of “Incredible India” campaign. Visa rules has been simplified. Medical visa has been added as a new type of visa. Bed and breakfast scheme has been put in place to compensate the shortage of hotels. Infrastructure around tourist places is being improved. Maintenance of monuments and other tourist attractions is being given due importance. As a result of “Open Sky” policy the connectivity of tourist places has increased. Initiative has also been taken to increase the number of qualified tourist guides.
India has the potential to enhance her world share from 0.49% of the world tourists. It is very small when looked from the point of view of sheer expanse of India and its profuse cultural and historical diversity. In the year 2006 as per the data of World Tourism Organization the receipt from international tourism reached the whopping USD 733 billion. There is huge opportunity for India. The Government of India needs to provided further positive impetus to garner higher number of international tourists.
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