अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रत्ता भारतीय संविधान का एक अनुपम उपहार है। यह मौलिक अधिकार वाले खंड में अनुसूचित है। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह स्वतंत्रता नितांत आवश्यक है। लोकतंत्र में लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनना होता है। यह चुनाव बिना उपयुक्त जानकारी के असंभव है। तर्कसंगत और उपयोगी जानकारी बिना स्वतंत्र और निरपेक्ष मीडिया के संभव नही है। भारतीय संविधान में समाचार पत्र अथवा अन्य माध्यमों का वर्णन नही है। यह सब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ही सन्निहित है। इसी स्वंतत्रता के भरोसे हम निर्भीकता से अपनी बात कहने में सफल होते हैं। यह विचारों के आदान प्रदान में सहायता पहुंचाता है। इसके बूते बिना हिंसा के क्रांति आ सकती है। भारतीय न्यायालयों ने भी इस स्वतंत्रता को समुचित आदर कि दृष्टि से देखा है।
भारतीय लोकतंत्र एक सफल लोकतंत्र साबित हुआ है इसमे संविधान की इस धारा का महत्वपूर्ण योगदान है। अगर हम अपने पड़ोसी मुल्कों या भारत के साथ ही आजाद हुए देशों को देखें तब हमे ये अनुभव होता है कि हमारा लोकतंत्र कितना विश्वास के साथ आगे बढ़ा है और बढ़ रहा है। ये किसी भी भारतवासी के लिए गर्व कि बात है।
अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता हमे एक स्वर देता है। इस स्वर का इस्तेमाल हम स्वच्छ राजनीति, सुशासन एवं विकास के लिए कर सकते हैं। इस स्वर का उपयोग दमन के खिलाफ कर सकते हैं। इस स्वर से समाज की अन्य कुरीतियाँ यथा गरीबी, जातिवाद, सामंतवाद, धर्मान्धता, दहेज़ प्रथा, स्त्री भ्रूण हत्या का समूल नाश किया जा सकता है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि भारत में ऐसा हो क्यों नही रहा है। इतने आदर्श विचारों के बाबजूद आदर्श समाज क्यों नही बन रहा है। इसके कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है अज्ञानता, अशिक्षा एवं रुढिवादिता। इसके अलावा अन्य कारण है स्वार्थ। स्वार्थ समाज के हर चरण और हर वर्ग में है। लोग अपने से कमजोर लोगों का अपने फायदे के लिए दोहन कर रहे हैं। सब अपना हित साधने में लगे हैं। लोगों का विचार सामाजिक या राष्ट्रीय नही है। भारतीय गाँधी जी के धरोहर्ता (trusteeship) के अवधारणा को भूल गए हैं। सब अपने अधिकार कि बात करते हैं किन्तु जब कर्तव्य कि बात अति है लोग बंगले झाँकने लगते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इसे समाज के लिए सोचना चाहिए। आज अगर हमने उन्नति कि है तो उसमे हमारे समाज का योगदान है। अगर ये समाज न होता तो हमे बोलना नही आता। जिस प्रकार हमारे शारीर को सुगठित करने में वातावरण का महत्व है उसी प्रकार हमारे मानसिकता को संवारने में हमारे समाज का महत्व है। आज व्यापारी केवल अपने लाभ का विचार कर रहे हैं। सरकारी सेवक अपने कर्तव्यों का निर्वहन नही कर रहें हैं। राजनेता अपने वोट कि व्यवस्था में लगे हैं। इस सामाजिक मानसिकता के ह्रास के वजह से ही संविधान में वर्णित अनमोल विचारों का फल नही मिल रहा है। यहाँ तक कि समाचार पत्र एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी किसी न किसी दवाब में आकर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं।
किन्तु इस प्रश्न का उत्तर भी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता में ही है। एक सुनियोजित, शांतिपूर्ण वैचारिक क्रांति कि आवश्यकता है। अन्याय के खिलाफ खरे होने कि आवश्यकता है। अपने दिए गए कर्तव्यों का समुचित, सुरुचिपूर्ण निर्वहन की आवश्यकता है। भारत बदल रहा है, यह तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर है। हम कामना करते हैं कि यह बदलाव भारत को विश्व में एक विकसित एवं सामाजिक समरस राष्ट्र के रूप में स्थान दिलायेगा। यह एक ऐसा देश होगा जहाँ सही मायने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी।
किन्तु इस प्रश्न का उत्तर भी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता में ही है। एक सुनियोजित, शांतिपूर्ण वैचारिक क्रांति कि आवश्यकता है। अन्याय के खिलाफ खरे होने कि आवश्यकता है। अपने दिए गए कर्तव्यों का समुचित, सुरुचिपूर्ण निर्वहन की आवश्यकता है। भारत बदल रहा है, यह तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर है। हम कामना करते हैं कि यह बदलाव भारत को विश्व में एक विकसित एवं सामाजिक समरस राष्ट्र के रूप में स्थान दिलायेगा। यह एक ऐसा देश होगा जहाँ सही मायने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी।
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